प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Sunday, March 22, 2009

मैं शिव क्यों नहीं हो पाता?


रोज रोज-
काल-मंथन से उपजा
सांसो का हलाहल
मैं पीता जाता
फ़िर यह संशय
मुझको खाता
मैं शिव
क्यों नही हो पाता?


अपने अंतर में
खंडित यह बोध लिए
पाप-पुण्य से रंजित
एक सोच लिए
अपनी दुविधा से
जन्मे दर्शन में
करता मीमांसा,
जहाँ जन्मा प्रश्न,
उसी गर्भ से -
उत्तर की आकांक्षा।


अपने तर्क-वितर्क उलझते
एक दुसरे के विरुद्ध
नित्य ही करते
जिज्ञासा मार्ग अवरुद्ध ।
पर इन सबसे इतर,
एक चिंतन नश्वर,
उकेरता मन में,
उत्तर के अक्षर ।



संभवतः मैं
जीवन की विषमताओ पर,
तांडव न कर पाता हूँ,
काम के मोहक आघातों पर,
क्रोधित न हो पाता हूँ।
इच्छाओ की मृग-तृष्णा में,
स्वं स्थिर न रह पाता हूँ
हलाहल पीकर भी -
जीवन को ललचाता हूँ।
संभवतः इस कारण मैं
शिव न हो पाता हूँ।


6 comments:

  1. अपने प्रश्न का उत्तर स्वयम आपने ढूंड लिया . सुंदर कविता बहुत ही सुंदर ,शुद्ध हिंदी

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  2. खुद से सवाल भी ... खुद ही जवाब भी ... और वह भी सुंदर प्रस्‍तुतिकरण के साथ ... बहुत बढिया।

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  3. इच्छाओ की मृग-तृष्णा में,
    स्वं स्थिर न रह पाता हूँ
    हलाहल पीकर भी -
    जीवन को ललचाता हूँ।
    संभवतः इस कारण मैं
    शिव न हो पाता हूँ।
    .... प्रसंशनीय रचना है, शुभकामनाएँ।

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  4. ---सुन्दर रचना....


    जीवन को जीना चाहिए हलाहल पीकर भी स्थिर रहना चाहिए , ललचाए बिना ..वही शिव बन सकता है...

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  5. ---सुन्दर रचना....


    जीवन को जीना चाहिए हलाहल पीकर भी स्थिर रहना चाहिए , ललचाए बिना ..वही शिव बन सकता है...

    ReplyDelete
  6. NIJANAND SWRUPAM SHIVOHAM SHIVOHAM
    GYANSWRUPAM SHIVOHAM SHIVOHAM
    PRAKASH SWRUPAM SHIVOHAM SHIVOHAM

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